कक्षा के पंद्रह बच्चे :
निराद्री - मोनासी - छवि का गुट:
1). निराद्री (जो लड़की पीछे मुड़कर बात कर रही थी)
2). मोनासी (जिस लड़की से निराद्री बात कर रही थी)
3). छवि (निराद्री और मोनासी के गुट में शामिल लड़की)
फाल्गुन :
4). फाल्गुन (पीछे कोने में बैठा कार्य-पुस्तक में से पढ़ रहा लड़का)
तिर्सिका - मकरूनी - हयात का गुट :
5). तिर्सिका (जो लड़की खडी होकर कल की खबर अपनी दोनों सहेलियों को बता रही थी)
6). मकरूनी (तिर्सिका के गुट की दूसरी लड़की)
7). हयात (तिर्सिका और मकरूनी के गुट की तीसरी लड़की)
अक्षेष - परधीश - अजान का गुट :
8). अक्षेष (जो तीन लड़कों का झुण्ड आपस में बात कर रहा था, उनमें से एक)
9). परधीश (अक्षेष के गुट का दूसरा लड़का)
10). अजान (अक्षेष और परधीश के गुट का तीसरा लड़का)
नीरा - किंजन का गुट :
11). नीरा (जिसने बोर्ड पर सन्देश लिखा)
12). किंजन (जो नीरा के साथ गुफ्तगू कर रही थी)
13). गण्मीत (जो नीरा और किंजन के बगल में बैठकर कॉपी पर कुछ लिख रहा था)
14). युग्शीश (जो लड़का मोबाइल पर गेम खेल रहा था)
15). लश्कू (कक्षा का कप्तान)
सातवीं कक्षा.
कक्षा में शिक्षिका अभी आई नहीं है.
बच्चे आपस में बात करते हुए शोर कर रहे हैं.
बच्चों में लड़के और लडकियां दोनों हैं.
एक लड़की पीछे मुड़कर अपनी सहेली से बात कर रही है. पीछे वाली की बगल की लड़की भी
उनके वार्तालाप में शामिल है.
पीछे की सीट पर बैठा कोनेवाला लड़का अपनी बड़े आकार की कार्य-पुस्तक में से पढ़
रहा है.
जो लड़की पीछे मुड़कर बात कर रही है, उसके बगल में तीन लड़कियों का एक और झुण्ड
आपस में बात कर रहा है. इस झुण्ड में से एक लड़की खडी होकर हाथ हिलाते हुए बाकी
दोनों को कल की खबर बता रही थी.
सामने, तीन लड़कों का झुण्ड खड़े होकर आपस में बात कर रहा है. तीनों मस्ती के
मूड में हैं.
उनके बगल में एक लड़का चोरी-छिपे यहाँ-वहाँ देखता हुआ अपने मोबाइल पर गेम खेल
रहा है.
सामने की ही एक और सीट पर दो लडकियां आपस में गुफ्तगू कर रही हैं. उनके बगल
में बैठा एक लड़का अपनी कॉपी पर कुछ लिख रहा है.
इस तरह कक्षा में कुल चौदह बच्चे हैं.
सबने स्कूल-यूनिफार्म पहन रखा है. लड़कों ने सफ़ेद कमीज़ और नीली पैंट पहन रखी
है. लड़कियों ने सफ़ेद टॉप और नीली स्कर्ट पहनी है.
कक्षा में विज्ञान और भूगोल सम्बंधित इश्तहार लगे हुए हैं.
इतने में एक और लड़का अन्दर प्रवेश करता है.
जो लड़का अपनी कॉपी पर कुछ लिख रहा था, वह ऊपर मुंडी उठाकर उस लड़के की ओर देखता
है जिसने अभी प्रवेश किया है.
गण्मीत (कॉपी पर लिखनेवाला लड़का) : लश्कू ...
लश्कू, जिसने अभी अभी प्रवेश किया है, दरवाजे के अन्दर आकर पूरी कक्षा का
निरिक्षण करता है.
लश्कू (जोर से चिल्लाते हुए) : क्लास ...
पूरी कक्षा शांत हो जाती है. शोरगुल अचानक ख़त्म हो जाता है. सब मुड़कर लश्कू की
ओर देखते हैं.
लश्कू : सब जन तैयार हैं ?
पूरी कक्षा एक साथ लेकिन धीमे से ताकि बाहर तक आवाज न जाए : हाँ.
लश्कू (सामने जो दो लडकियां बैठकर गुफ्तगू कर रहीं थीं, उनमें से एक लड़की को
संबोधित करते हुए) : नीरा, तू बोर्ड पर 'मैडम आपको शिक्षक दिन मुबारक हो' लिख.
और हो सके तो कोई अच्छा चित्र बना दे.
नीरा तुरंत उठकर बोर्ड पर सन्देश लिखने जाती है.
लश्कू : सब लोग अपने अपने फूल लाए हो ?
सब बच्चे अपने अपने बस्तों में से एक एक फूल निकालते हैं.
लश्कू भी अपने बस्ते में से अपना फूल निकालता है.
लश्कू (नीरा से) : नीरा, तू भी पहले अपना फूल दे दे, फिर बोर्ड पर बनाती बैठ.
नीरा अपना फूल अपने बस्ते से निकालकर लश्कू को दे देती है और वापिस बोर्ड पर
चित्रकारी करने में मग्न हो जाती है.
लश्कू : जैसा मैंने तुम सबको समझाया था, सबने अपने पसंद का इत्र, इत्र की बोतल
में से अपने अपने फूल पर छिड़क दिया है ?
सब बच्चे हामी भरते हैं.
निराद्री (जो लड़की पीछे मुड़कर बात कर रही थी) : मैंने लैवेंडर छिड़का है.
मोनासी (जिस लड़की से निराद्री बात कर रही थी) : मैंने रोस छिड़का है.
छवि (निराद्री और मोनासी के गुट में शामिल लड़की) : मैंने स्ट्रॉबेरी छिड़का है.
फाल्गुन (पीछे कोने में बैठा कार्य-पुस्तक में से पढ़ रहा लड़का) : मेरी मम्मी
पार्टी में जो सेन्ट लगाती है, मैंने वही छिड़का है.
तिर्सिका (जो लड़की खडी होकर कल की खबर अपनी दोनों सहेलियों को बता रही थी) :
मेरे घर में जो सेन्ट था, उसपर नीम्बू का चित्र छपा था. मैंने वही लैमन सेन्ट
छिड़का है.
मकरूनी (तिर्सिका के गुट की दूसरी लड़की) : मेरे को तो मालूम नहीं सेन्ट का
नाम, लेकिन वो काला-खट्टा शरबत जैसा दिखता है.
हयात (तिर्सिका और मकरूनी के गुट की तीसरी लड़की) : मेरा जामुनी सेन्ट है.
अक्षेष (जो तीन लड़कों का झुण्ड आपस में बात कर रहा था, उनमें से एक) : मेरे
वाले को 'पीच' बोलते हैं.
परधीश (अक्षेष के गुट का दूसरा लड़का) : मेरा वाला 'बैरी' है.
अजान (अक्षेष और परधीश के गुट का तीसरा लड़का) : मेरा वाला मम्मी ने मॉल में से
बहुत महंगा खरीदा था. उसपर 'शनैल' लिखा हुआ था.
नीरा (बोर्ड पर से ही) : मेरी दीदी ने भी मॉल से खरीदा था. उसपर 'कोको' लिखा
हुआ है.
किंजन (जो नीरा के साथ गुफ्तगू कर रही थी) : मेरा वाले में सेब जैसी खुशबू आती
है.
गण्मीत (जो नीरा और किंजन के बगल में बैठकर कॉपी पर कुछ लिख रहा था) : मेरी
मम्मी का लाल कलर का है. वही लगाया अपने फूल पर मैंने.
युग्शीश (जो लड़का मोबाइल पर गेम खेल रहा था) : मेरा वाले सेन्ट की शीशी में से
एकदम आर-पार साफ़ नज़र आता है. वही छिड़का है मैंने.
लश्कू (सबकी सुनने के बाद) : ठीक है. मेरे में से संतरे की सुगंध आती है.
लश्कू अपना और नीरा का फूल आगे बढ़ा देता है.
लश्कू : सब लोग अपना अपना फूल मुझे दे दो.
सब बच्चे अपना अपना फूल लश्कू को दे देते हैं.
लश्कू (मकरूनी से) : मकरूनी, इन सब फूलों को गुच्छे में बाँध दे. एकदम अच्छे
से बांधना.
मकरूनी फूलों को ले लेती है और अपने बस्ते में से एक फैंसी गिफ्ट-वाली रिबन
निकालकर फूलों को बाँधने लगती है.
तब तक नीरा का बोर्ड पर 'शिक्षक दिवस की बधाई' का सन्देश लिखना पूरा हो जाता
है. उसने एक फूल भी बोर्ड पर बनाया है.
मोनासी : मुझे तो विशवास ही नहीं हो रहा है कि हम लोग ये सब कर रहे हैं.
निराद्री : मुझे तो लग रहा है कि हमको ऐसा नहीं करना चाहिए था.
छवि : क्यों नहीं करना चाहिए था ?
निराद्री : मालूम नहीं. मुझे भी कोई इत्र नहीं डालना चाहिए था.
मोनासी : पर क्यों ?
निराद्री : क्योंकि कोई अच्छी सी मजेदार चीज़ करनी चाहिए थी. या तो कोई गीत
गाना चाहिए था. फूलों का गुच्छा तो कोई भी बाज़ार से लाकर दे सकता है.
अजान : लेकिन इसमें हम सबने अपनी अपनी पसंद का सेन्ट भी तो डाला है. कितना
खुशबूदार हो गया है.
परधीश : हाँ, ऐसा वाला बाज़ार में थोड़े ही मिलेगा.
अक्षेष : काफी रंगबिरंगा हो गया है.
हयात : हो सकता है कि मैडम आज इतना खुश हो जाए कि क्लास ही न ले.
गण्मीत : ये तो बहुत ही अच्छा होगा. मैंने होमवर्क पूरा नहीं किया है. अभी तक
कॉपी में लिख रहा हूँ.
मकरूनी ने फूलों को अच्छे से एक गुच्छे में बाँध दिया है. गुच्छे को वह लश्कू
को दे देती है.
अचानक जोर से घंटी बजने की आवाज है. सब लोग अपनी अपनी सीट पर बैठ जाते हैं.
युग्शीश अपना मोबाइल अपने बस्ते के अन्दर रख देता है.
कक्षा में टीचर का प्रवेश. टीचर महिला है. उसने सलवार-कमीज़ पहनी हुई है. वह
दिखने में कम उम्र की लगती है.
कक्षा में शांति छा जाती है.
पहन्सिका (टीचर) : गुड मॉर्निंग बच्चों.
सब बच्चे एक साथ : गुड मॉर्निंग टीचर.
गण्मीत (हाथ ऊपर उठाते हुए) : मैडम मुझे टॉयलेट जाना है.
पहन्सिका : गण्मीत, आज तूने फिर होमवर्क नहीं किया है ना ?
गण्मीत : मैडम मुझे जल्दी टॉयलेट जाना है.
पहन्सिका (हँसते हुए) : ठीक है गण्मीत. जाओ. लेकिन टॉयलेट के बाद तो क्लास में
ही आना है तुमको.
गण्मीत उठकर क्लास से बाहर चला जाता है.
पहन्सिका : तो बच्चों, आज लंच के बाद, स्कूल के ऑडिटोरियम में नंवी कक्षा के
बच्चे एक नाटक प्रस्तुत करेंगे. सबको वहाँ रहना है.
फाल्गुन (खुश होकर, अपनी पीछे की सीट पर ही बैठा रहकर) : तो फिर आज लंच के बाद
कोई क्लास नहीं होगी.
पहन्सिका : कितनी ख़ुशी की बात है ना तुम सब बच्चों के लिए ? लेकिन नाटक ध्यान
से देखना. मुझे पता लगा है कि बड़ी मेहनत से तैयार किया है नंवी कक्षा के
विद्यार्थियों ने.
इतना कहकर पहन्सिका अपने पीछे मुड़कर बोर्ड की तरफ की तरफ जाती है और बोर्ड को
देखती है. बोर्ड पर 'शिक्षक दिवस मुबारक हो' का सन्देश सजावटी लिखावट में
देख, और उसके साथ फूल की बनी चित्रकारी को देख वह गदगद हो जाती है. कुछ देर तक
वह बोर्ड को निहारती है. बच्चे दिल थामकर मैडम की प्रतिक्रिया का इंतज़ार करते
हैं.
पहन्सिका : बच्चों, बहुत ही अच्छा लगा. मुझे ये जानकर बहुत ख़ुशी हुई कि तुम सब
बच्चों को शिक्षक दिवस के बारे में पता है.लेकिन आज कोई छुट्टी नहीं है !
दो-तीन बच्चे एक साथ : नहीं !
लश्कू उठकर खड़ा हो जाता है. अपनी बेंच पर से फूलों का बंधा हुआ गुच्छा लेकर
पहन्सिका के पास आता है और उसे देता है. पहन्सिका गुच्छा ले लेती है.
लश्कू : मैडम, आपको हम सभी की ओर से शिक्षक दिवस की बहुत बहुत शुभकामनाएं.
पहन्सिका (मुस्कुराते हुए) : तुम सबका बहुत बहुत धन्यवाद बच्चों.
लश्कू : आप हमारी क्लास टीचर हैं.
पहन्सिका : धन्यवाद लश्कू. अब तुम बैठ जाओ. पढ़ाई शुरू करते हैं.
लश्कू आकर अपनी जगह पर बैठ जाता है.
पहन्सिका : आज के दिन पर शिक्षा विभाग से एक ख़ास मेहमान आनेवाले हैं. एक घंटे
के बाद. वो हमको शिक्षा और शिक्षकों के महत्त्व के बारे में बताएँगे. और
वर्तमान शिक्षा प्रणाली में क्या सुधार होना चाहिए, इस बारे में भी बताएँगे.
फाल्गुन : बोरिंग !
मोनासी और छवि उसकी तरफ घूर कर देखते हैं. फाल्गुन सकपकाकर वापिस अपने वर्कबुक
की ओर आँखें फेर लेता है.
पहन्सिका : कितना अच्छा होता अगर ऐसा ही फूलों का गुच्छा हम हमारे ख़ास मेहमान
को दे सकते.
मकरूनी : बिलकुल दे सकते हैं मैडम.
किंजन : यही वाला दे सकते हैं.
सब हँसते हैं.
पहन्सिका : दरअसल, आईडिया कोई बुरा नहीं है. ये गुच्छा बहुत ही रंगबिरंगा है
और दिखने में बहुत ही आकर्षक है. यही वाला उसको दे देंगे.
लश्कू : पर मैडम, ये तो ख़ास हमने आप ही के लिए बनाया है.
पहन्सिका : बेटा, अपनी खुशियाँ बांटने में ही असली मज़ा है. आई हुई दौलत किसी
और को दे दी जाए, तो पुण्य ही मिलता है.
नीरा : हाँ मैडम, भले दीजिये. कोई बात नहीं है.
अक्षेष : हाँ मैडम, उनको भी अच्छा लगेगा. हमारी क्लास को वो हमेशा याद रखेंगे
कि ऐसा फूलों का गुच्छा दिया था.
अजान : हाँ मैडम, उनको जरूर देंगे. हम ही सब मिलकर देंगे.
पहन्सिका : बहुत ही अच्छी बात कही है बच्चों तुम लोगों ने. आज हमारे अतिथि इस
फूलों के गुच्छे से जरूर खुश होंगे. वैसे इस गुच्छे में से खुशबू भी बहुत
अच्छी आ रही है. फूलों की खुशबू जैसी खुशबू नहीं है. अलग और निराली और मनमोहक
खुशबू है.
सब बच्चे प्रसन्न हो जाते हैं.
पहन्सिका फूलों के गुच्छे को अपने नाक के करीब लाकर सूंघती है.
पहन्सिका : बहुत ही सुगन्धित गुच्छा है.
हयात : मैडम, हम सभी ने अपने अपने घर में से एक एक अलग अलग इत्र इसपर छिड़का
है.
अचानक पहन्सिका छींकती है. फिर एक और बार छींकती है.
पहन्सिका : मुझे इत्र से एलर्जी है. हर प्रकार के इत्र मुझे सूट नहीं होते
हैं.
पहन्सिका एक बार और छींकती है.
पहन्सिका : एलर्जी से मुझे छींके आनी शुरू हो जाती हैं.
पहन्सिका को और छींक आती है. फिर अचानक पहन्सिका का दम घुटने लगता है. उसको
सांस लेने में तकलीफ होने लगती है. वह जोर-जोर से भर-भरकर साँसे लेती है.
सब बच्चे परेशान हो जाते हैं. एक दूसरे की तरफ देखते हैं.
पहन्सिका अपनी छाती पकड़कर नीचे ज़मीन पर बैठ जाती है.
लश्कू : मैडम, ये क्या हो रहा है आपको ?
पहन्सिका की ओर से कोई उत्तर नहीं आता है. वह भारी तकलीफ में है.
पहन्सिका (धीरे से) : एलर्जी ...
पहन्सिका ज़मीन पर लेट जाती है. और शांत हो जाती है. उसकी ओर से कोई भी हलचल
नहीं होती नज़र आती है.
बच्चे आपस में फुसफुसाते हैं.
अजान : बाप रे, ये क्या हो गया ?
छवि : मैडम तो बेहोश हो गई.
परधीश : चलो प्रिंसिपल मैडम को बताते हैं.
युग्शीश अपना मोबाइल निकालकर गेम खेलना शुरू कर देता है, मानों उसे कोई फ़िक्र
न हो.
लश्कू : ठहरो. अभी प्रिंसिपल मैडम के पास जाने की जरूरत नहीं है. हो सकता है
मैडम को अभी होश आ जाए और वो उठ जाएं.
तिर्सिका : हाँ, सिर्फ मामूली एलर्जी होगी.
नीरा : मेरी दीदी को भी धूल से एलर्जी थी. उसको भी धूल से छींकें आती थी.
तिर्सिका : फिर वो क्या करती थी ?
नीरा : कुछ नहीं. थोड़ी ही देर में अपने आप सब ठीक हो जाता था. धूल से बचने के
लिए घर से बाहर निकलते समय वो हाथों पर और मूंह पर कपडा बाँध लेती थी.
तिर्सिका : लेकिन मैडम तो पूरी ही बेहोश हो गई हैं.
लश्कू मैडम के पास जाता है.
लश्कू : मैडम की तो सांस भी चलती नहीं नज़र आ रही है.
तिर्सिका, परधीश और छवि मैडम के पास आ जाते हैं.
तिर्सिका : मैडम को कुछ गलत तो नहीं हो गया ?
परधीश मैडम को झकझोरता है.
परधीश : मैडम, उठो. उठो मैडम.
अजान (मैडम के पास आकर): मैंने सुना है कि जूता सुंघाने से वापिस होश आ जाता
है.
किंजन : पगले वो मिर्गी में होता है, एलर्जी में नहीं.
अजान (किंजन की बात अनसुनी करके) : लेकिन कोशिश करने में कोई हर्जा नहीं है.
अजान अपना जूता निकालता है.
किंजन : अरे पागल, ये क्या कर रहा है. मैडम को जूता सुंघायेगा तू ?
अजान किंजन की बात न सुनकर मैडम के नाक पर अपने जूते का खुला हुआ भाग रख देता
है. लेकिन थोड़ी देर तक रखने के बाद भी मैडम की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं
होती है. किंजन अजान का हाथ खींचकर उसका जूता मैडम की नाक से हटवा लेती है.
अजान अपना जूता वापिस पहन लेता है.
फाल्गुन (पीछे बैठ हुए ही) : मेरी मम्मी नर्स है.
सब बच्चे उसकी ओर देखते हैं.
लश्कू (चिल्लाकर) : तो फिर तू अभी तक वहाँ क्यों बैठा है ? इधर आ. मैडम की
नब्ज़ देख.
फाल्गुन अपनी सीट से उठकर आता है. मैडम के पास जाता है. उसकी नब्ज़ टटोलता है.
फाल्गुन : नब्ज़ तो मिल ही नहीं रही है.
अक्षेष (पास आते हुए) : तेरे को नब्ज़ देखना आता भी है ? चल बाजू सरक, मैं मैडम
की दिल की धड़कन देखता हूँ.
मकरूनी : नहीं, मैं देखूँगी. मुझे आता है.
मकरूनी मैडम के दिल की धड़कन की जाँच करती है.
मकरूनी : मुझे तो मैडम का दिल धड़कता हुआ महसूस ही नहीं हो रहा है.
फाल्गुन : वही तो मैं कह रहा था. नब्ज़ ही नहीं मिल रही है. सरक, मुझे गले पर
नब्ज़ देखने दे. मेरी मम्मी गले पर भी नब्ज़ देखती है.
फाल्गुन गले पर नब्ज़ देखता है.
फाल्गुन : मुझे तो गले पर भी नहीं महसूस हो रही है.
तिर्सिका मैडम के पास जाकर, अपना चेहरा मैडम के चेहरे के करीब लाकर, मैडम की
मूंह पर अपना कान रखकर कुछ सुनने की कोशिश करती है.
तिर्सिका : मुझे भी कुछ भी सुनाई नहीं आ रहा है. कोई भी सांस लेने की आवाज़
नहीं आ रही है.
चंद पलों के लिए कक्षा में चुप्पी छा जाती है. किसी के भी मूंह से कुछ भी नहीं
फूटता है.
फिर अचानक कक्षा की चुप्पी को तोड़ते हुए निराद्री हलके से चीखती है. बाकी
बच्चे भी थोडा थोडा शोर मचाना शुरू कर देते हैं. मोनासी रोने लगती है. युग्शीश
अपना गेम बंद करके मोबाइल अन्दर रख देता है.
छवि (जो मैडम के पास ही खडी है, गहरी सांस भरकर मानो अभी रोने वाली हो) : मैडम
मर गई क्या ?
मकरूनी : शायद. दिल भी नहीं धड़क रहा है मैडम का.
लश्कू (जोर से कक्षा को संबोधित करते हुए) : शांत. सब लोग शांत हो जाओ.
पहले तो बच्चे उसकी सुनते नहीं है. फिर शोरगुल धीरे धीरे कम हो जाता है.
लश्कू : चुप हो जाओ सब लोग.
सब बच्चे चुप हो जाते हैं. कक्षा में चुप्पी छा जाती है. अचानक अजान नीचे गिर
जाता है. लश्कू अजान की ओर देखता है, लेकिन फिर उसकी ओर कोई ध्यान नहीं देता
है.
निराद्री दरवाजे की ओर बढती है. दरवाजा बंद पड़ा है. वह जैसे ही दरवाजे को
खोलने के लिए जाती है,लश्कू उसको वापिस कक्षा में अन्दर खींच लाता है.
अजान वापिस उठ खड़ा होता है.
अक्षेष एक बार फिर मैडम के नज़दीक जाकर ध्यान से देखता है. लेकिन उसे कोई हलचल
नहीं दिखाई देती है.
अचानक दरवाज़ा खुलता है. सबकी साँसें रुक जाती हैं.
गण्मीत, जो टॉयलेट गया था, अन्दर आता है. वह दरवाजे को बंद करता है. सबको
इधर-उधर बिखरा हुआ देखकर उसको आश्चर्य होता है. सब लोग गण्मीत को देखते हैं.
गण्मीत मैडम को देखता है.
गण्मीत : मैडम को क्या हो गया ? वो ज़मीन पर क्यों लेटी है ?
लश्कू : तेरे को मैं बाद में समझाता हूँ.
गण्मीत को जैसे कुछ समझ में आ रहा हो. वह सपाट चेहरे से मैडम को देखता है.
लश्कू : फूलों के गुच्छे में लगे इत्र से मैडम को एलर्जिक रिएक्शन हो गया.
गण्मीत (लश्कू पर दोष डालते हुए) : तूने ही तो बोला था.
लश्कू : मैंने क्या बोला था ? मेरा कोई दोष थोड़ी है. मेरे को थोड़ी मालूम था कि
मैडम मर जाएगी.
गण्मीत (जोर से) : मैडम मर गई ?
लश्कू उसका मूंह बंद कर लेता है.
लश्कू : इतना जोर से चिल्लाने की जरूरत नहीं है.
निराद्री : मैंने तो पहले ही बोला था कि कोई अच्छी सी मजेदार चीज़ करनी चाहिए.
मैंने तो ये भी बोला था कि कोई गीत गाना चाहिए. फूलों का गुच्छा तो कोई भी
बाज़ार से लाकर दे सकता है.
छवि : निराद्री, पहली ही बार में तेरा अच्छे से सुन लिया था.
निराद्री : फूलों का गुच्छा देने की क्या तुक है ?
छवि : हे भगवान् !
फाल्गुन : मेरी मम्मी नर्स है ...
अक्षेष : कितने बार वही चीज़ बोलेगा ?
फाल्गुन (अपनी बात जारी रखते हुए) : ... अगर वो यहाँ होती तो बोलती कि मैडम की
मौत स्वाभाविक कारणों से नहीं हुई है.
अक्षेष : मैडम स्वाभाविक मौत नहीं मरी है ?
फाल्गुन : नहीं.
अजान : तेरी मम्मी को यहाँ बुला लें ?
फाल्गुन : तेरा दिमाग खराब हो गया है क्या ? मेरा स्कूल में आना ही बंद कर
देगी मेरी मम्मी.
परधीश : मतलब मैडम का हम लोगों ने खून कर दिया है.
तिर्सिका : खून ?
मोनासी : खून ?
हयात : खून ?
परधीश : हाँ, हम लोगों के कारण ही तो वो मर गई है. हम लोगों ने ही मैडम को मार
दिया.
हयात (पीछे हटते हुए) : मैंने खून नहीं किया है.
मोनासी : मैंने भी नहीं किया है.
तिर्सिका : मैंने कोई खून-वून नहीं किया है.
युग्शीश : अगर यह कोई गेम होता तो पुलीस आकर हमको पकड़कर ले जाती.
मोनासी : पुलीस ?
मोनासी फिर से रोने लगती है.
मोनासी (रोते हुए) : मुझे पुलीसवालों के पास नहीं जाना है. मुझे पुलीस से बहुत
डर लगता है.
लश्कू : चुप हो जाओ तुम सब लोग. कोई पुलीस आकार किसी को पकड़कर नहीं ले जाएगी.
ये सब किसी का दोष नहीं है. गलती से हुआ है. ये एक दुर्घटना थी.
युग्शीश : पुलिसवाले थोड़ी ही समझेंगे कि यह एक दुर्घटना थी. उनको तो किसी न
किसी को अन्दर करने का बहाना मिल जाएगा. गेम में ऐसा ही होता है.
अक्षेष : गलती से किसी को धक्का लग जाता है और वो आदमी गड्ढे में गिर जाता है
और मर जाता है, तो क्या धक्का देने वाले को सजा मिलेगी ?
परधीश : उस केस में तो उस आदमी को सजा मिलनी चाहिए जिसने गड्ढा खोदा था.
अक्षेष : यहाँ गड्ढा खोदता कौन है ? सब गड्ढे अपने आप पैदा हो जाते हैं.
परधीश : तो फिर शहर की नागरिक समिति पर केस होना चाहिए, धक्का देने वाले पर
नहीं.
मकरूनी : बिलकुल सही. उसी प्रकार हमारे ऊपर भी कोई केस नहीं होना चाहिए. ये सब
इत्र बनाने वालों की गलती है.
नीरा : जब शिक्षा विभाग का आदमी आएगा, तो हम उसको क्या मूंह दिखाएँगे ?
लश्कू : एक उपाय है.
किंजन : क्या उपाय है ?
लश्कू : ध्यान से सुनना.
किंजन : तू बोल तो सही.
लश्कू : मैडम को छिपा देते हैं.
अक्षेष : लश्कू तू क्या बोल रहा है ?
निराद्री : तेरा दिमाग तो नहीं खराब हो गया है ?
लश्कू : तुम लोगों के बारे में मुझे नहीं पता. लेकिन किसी भी ऐसी चीज़ के लिए
मैं जेल में नहीं जाना चाहता हूँ, जो मैंने नहीं की. ये सिर्फ एक दुर्घटना थी.
उसके लिए मैं जेल में जाने को तैयार नहीं हूँ.
युग्शीश : लश्कू की बात सही है. हम सब लोग सिर्फ बच्चे हैं. किसी को शक भी
नहीं होगा कि हमारे कारण ऐसा हुआ है.
लश्कू : इससे पहले कि शिक्षा विभाग का आदमी आ जाए, हम लोग मैडम को छिपा देते
हैं. फिर हम सब लोग ऐसा प्रतीत करेंगे जैसे कुछ हुआ ही न हो.
निराद्री : मैडम को मारकर हम लोग बच जाएंगे ?
मोनासी : ऐसा नहीं हो सकता है.
निराद्री : ऐसा बिलकुल नहीं हो सकता है. मेरी दादी हरदम कहती है कि हम लोगों
को हमेशा गांधीजी की तरह सच बोलना चाहिए.
छवि : अगर इसके हमको जेल भी जाना पड़े तो भी ?
निराद्री : बिलकुल. गांधीजी भी तो जेल गए थे सच बोलकर. भले ही हमको जेल जाना
पड़े. और अपने मम्मी-पापा का चेहरा ज़िन्दगी भर नहीं देखना पड़े.
अजान : गांधीजी का सत्याग्रह आन्दोलन क्या सच बोलने वाला सत्य का आग्रह करने
वाला आन्दोलन था और इसीलिए वो जेल गए थे ?
निराद्री : जेल के अन्दर रहकर कम से कम अच्छा तो लगेगा कि हमने सच का साथ दिया
और सही काम किया है.
लश्कू (पूरी कक्षा को संबोधित करके) : कौन कौन निराद्री के साथ है और जेल जाना
चाहता है, अपने अपने हाथ ऊपर खड़े करो.
सिर्फ निराद्री हाथ ऊपर खड़े करती है, बाकी कोई नहीं.
लश्कू : ठीक है, अब फैसला हो गया. जनतंत्र के हित में,सर्वसम्मति से, इस कक्षा
का कप्तान होने के नाते, मैं यह फैसला लेता हूँ कि निराद्री को इस कक्षा की
मुख्यधारा से अलग रखा जाए, नहीं तो वो हमको जेल भेजकर छोड़ेगी.
अजान : तो फिर हमें करना क्या चाहिए ?
लश्कू : एक काम कर सकते हैं. लेकिन सबको ठीक उसी प्रकार करना पड़ेगा जैसा मैं
कहता हूँ.
मोनासी : लेकिन हमको जल्दी सब कुछ करना है, क्योंकि शिक्षा विभाग का आदमी
क्लास ख़तम होने के बाद आनेवाला है.
लश्कू (गण्मीत से) : गण्मीत, तू पूरे स्कूल में यहाँ वहाँ बहुत घूमता रहता है.
तू बता, मैडम को छिपाने का सबसे अच्छा स्थान कौन-सा है.
गण्मीत (थोडा सोचकर) : वैसे तो मैदान के बाहर झाड़ियों में बहुत अच्छी जगह है
छिपाने के लिए, लेकिन हम मैडमको घसीटकर ले जाएंगे तो बाकी क्लास के लोग देख
लेंगे. इसीलिए सबसे अच्छा यही है कि क्लास के बगल में जो बाथरूम है, वहाँ एक
टॉयलेट के अन्दर मैडम को रख देते हैं. फिर लोगों को भी यही लगेगा कि मैडम
टॉयलेट में ही गिर गई.
छवि : मेरेको यह आईडिया बहुत पसंद है.
अक्षेष : मुझे भी.
किंजन : ये ठीक है.
मकरूनी : यही हमारे लिए सही है.
लश्कू : ठीक है, तो फिर फैसला हो गया कि हम मैडम को कक्षा के बगल वाले बाथरूम
के एक टॉयलेट में छोड़ देंगे.
हयात : मैडम को लेकर कौन जाएगा ?
तिर्सिका : मेरे में तो उतना दम नहीं है.
युग्शीश : मैं तैयार हूँ. मोबाइल गेम में मैंने देखा है कैसे लेके जाते हैं.
फाल्गुन : मेरी मम्मी ने बताया है कि सही तरीका यह है कि दो लोग सामने से
पकड़ना चाहिए और दो लोग पीछे से.
लश्कू : ठीक है, दो लोग सामने से हाथ पकड़कर ले जाएंगे और दो लोग पीछे से पैर
पकड़कर.
तिर्सिका : लेकिन वो दो-दो लोग होंगे कौन ?
लश्कू : मैं और युग्शीश सामने हाथ पकड़ लेते हैं,अक्षेष और परधीश तुम दोनों
पीछे से पाँव पकड़ लो.
लश्कू और युग्शीश मैडम के हाथ पकड़कर, और अक्षेष और परधीश मैडम के पाँव पकड़कर
बाहर ले जाते हैं.
तिर्सिका उनके लिए दरवाजा खोलती है, फिर उनके जाने के बाद कक्षा का दरवाजा बंद
कर देती है.
मोनासी फिर से रोने लगती है.
छवि (मोनासी को दिलासा दिलाते हुए) : मत रो पगली, सब ठीक हो जाएगा.
नीरा : हाँ, अब किसी को कोई शक भी नहीं होगा.
अचानक दरवाजा झटके के साथ खुलता है. स्कूल की प्रिंसिपल एक आदमी के साथ क्लास
के अन्दर आती है.
सब बच्चे डरकर भागकर अपनी अपनी जगह पर बैठ जाते हैं. फिर एक साथ खड़े हो जाते
हैं.
सब बच्चे : गुड मॉर्निंग प्रिंसिपल मैडम.
प्रिंसिपल : गुड मॉर्निंग बच्चों. तुम्हारी क्लास टीचर कहाँ चले गई ?
सब एक दूसरे की तरफ देखते हैं.
अजान (हिम्मत बांधकर) : प्रिंसिपल मैडम,पहन्सिका मैडम को अच्छा नहीं लग रहा
था, इसीलिए वो थोड़ी देर पहले बाहर चली गई.
प्रिंसिपल : अच्छा चलो कोई बात नहीं, लेकिन आज क्लास में बहुत ही कम बच्चे नज़र
आ रहे हैं.
कोई कुछ नहीं बोलता है.
प्रिंसिपल मैडम बोर्ड पर बने 'शिक्षक दिवस मुबारक हो' के सन्देश की तरफ देखती
है.
प्रिंसिपल : अरे वाह, ये तो बहुत ही अच्छा बनाया है. किसने बनाया है ?
नीरा : जी प्रिंसिपल मैडम, मैंने बनाया है.
प्रिंसिपल : बेटा, बहुत ही खूबसूरत बनाया है. और आज के दिन पर सन्देश भी बहुत
ही बढ़िया लिखा है.
नीरा : धन्यवाद मैडम.
इतने में दरवाजा खुलता है.
लश्कू, युग्शीश, अक्षेष और परधीश अन्दर आते हैं. फिर प्रिंसिपल मैडम को देख
सकपकाकर वहीँ रुक जाते हैं.
युग्शीश (डरकर और हकलाकर, हाथ सामने करके इजाजत मांगते हुए) : प्रिंसिपल मैडम,
हम अन्दर आ सकते हैं ?
प्रिंसिपल : आ जाओ बच्चों, कहाँ चले गए थे तुम लोग ?
अक्षेष : वो ... (अक्षेष रुक जाता है)
युग्शीश (बात सम्हालते हुए) : प्रिंसिपल मैडम, हम अपने कोच को शिक्षक दिवस की
बधाई देने गए थे.
प्रिंसिपल : लेकिन बेटा, वो तो आज आए ही नहीं हैं.
लश्कू : जी प्रिंसिपल मैडम, हमको भी नहीं दिखे. इसीलिए हम वापिस आ गए.
प्रिंसिपल : चलो कोई बात नहीं, बैठ जाओ अपनी अपनी जगह पर.
चारों अपनी अपनी सीट पर बैठ जाते हैं. बाकी बच्चे, जो अब तक खड़े थे, वो भी
अपनी सीट पर बैठ जाते हैं.
प्रिंसिपल : बच्चों, जैसा कि तुम सब जानते हो, आज शिक्षक दिवस है. इसीलिए
शिक्षा विभाग से ख़ास हम लोगों के लिए अपना कीमती समय निकालकर वहाँ के अधिकारी
मिस्टर हंसिक आज शिक्षा का महत्त्व तुम सब लोगों को बताएँगे. ज्यादा देर नहीं
बताएँगे, क्योंकि बाकी कक्षाओं में भी इनको जाना है.
प्रिंसिपल मैडम मिस्टर हंसिक की ओर देखती है.
प्रिंसिपल : तो मिस्टर हंसिक, यहाँ बच्चों को बताकर फिर ऊपर आठवीं कक्षा में
चले जाना. उसके बाद नववीं में, फिर दसवीं में. मैंने तो बता ही दिया है कि ये
तीनों कक्षाएं ऊपर ही हैं. सब टीचरों को आपके आने की जानकारी भी है. सीधा
क्लास में चले जाना.
मिस्टर हंसिक सर हिलाकर हामी भरता है.
प्रिंसिपल : ठीक है बच्चों, ध्यान से सुनना.
सब बच्चे खड़े हो जाते हैं.
सब बच्चे : जी मैडम.
प्रिंसिपल मैडम कक्षा से निकलकर चले जाती है.
सब बच्चे बैठ जाते हैं.
मिस्टर हंसिक तकरीबन 30 साल का एक हंसमुख इंसान है.
जैसे ही प्रिंसिपल जाती है और दरवाजा बंद होता है, मिस्टर हंसिक सामने ही बैठे
हुए गण्मीत की पीठ पर जोर से हथेली से मारता है.
हंसिक : और भाई, कैसे हो तुम सब लोग ?
गण्मीत अपनी पीठ पर इतने जोर से हुए वार से सामने ही अपनी बेंच से टकरा जाता
है. उसको चोट लग जाती है.
हंसिक (गण्मीत से) : अरे इतने से धक्के से आगे गिर गए बेटा तुम ?
गण्मीत के बगल में बैठी किंजन परेशान होकर गण्मीत को देखती है.
किंजन (गण्मीत से) : ज्यादा जोर से लग गया क्या ?
हंसिक (गण्मीत से) : हमेशा तनकर सीधा बैठना चाहिए. समझे ?
हंसिक (किंजन से) : कुछ नहीं है. सब ठीक है.
किंजन (गण्मीत से) : खून तो नहीं निकल रहा है ?
हंसिक : नहीं, कुछ नहीं है. बहादुर बच्चा है ये.
गण्मीत किंजन को इशारा करता है मानों वह ठीक है. लेकिन अभी भी बेंच की चोट से
उसको दुःख रहा है.
हंसिक (पूरी कक्षा को संबोधित करते हुए) : बच्चों आज हम लोग शिक्षा का महत्त्व
समझेंगे. शिक्षा का परिणाम यह होना चाहिए कि हम सब को लगे कि शिक्षा मिलने के
बाद हम सभी लोग उन सब लोगों से ऊपर आ गए हैं जिनके पास शिक्षा नहीं है. शिक्षा
हमारी जिंदगी बचाने का एक माध्यम होना चाहिए.
हंसिक अपनी जेब से एक बिस्कुट का पैकेट निकालता है, और उसमें से एक बिस्कुट
खाकर पैकेट को वापिस अपनी जेब में रख देता है.
हंसिक : शिक्षा का उद्देश्य यह है कि हम लोग कोई भी गलत काम नहीं करें.
निराद्री : हमारी मैडम यह कहती है कि क्लास में खाना नहीं चाहिए.
हंसिक : जिस आदमी ने सबेरा का नाश्ता नहीं किया हो, उसके लिए यह बात लागू नहीं
होती है.खैर, तुम लोगों की मैडम ठीक ही कहती है. क्लास में खाने से क्लास के
अन्दर कीड़े और कॉकरोच आ जाते हैं. फिर वो कीड़े और कॉकरोच तुम्हारे ही जूतों के
अन्दर घुसेंगे. तुमको अच्छा लगेगा ?
अजान : नहीं लगेगा.
हंसिक : हम लोगों को मैडम की बात मानना चाहिए. बात नहीं मानने से मैडम को
सख्ती से पेश आना चाहिए. तो ही बच्चे सीखते हैं. अगर ज्यादा कुछ किया तो सीधा
पुलीस को बुला लेना चाहिए. फिर पुलीस उनको पीट-पीटकर सीधा कर देगी.
सब लोग डरकर हथप्रभ होकर मिस्टर हंसिक की ओर देखते हैं.
हंसिक : अरे इतना डरकर क्या देख रहे हो, मैं तो मज़ाक कर रहा था. बच्चों के लिए
भी कभी कोई पुलीस को बुलाता है ?
मोनासी (डरकर) : पता नहीं.
निराद्री : मैं तो बोलती हूँ भले बुला लो.
हंसिक आश्चर्य से निराद्री की तरफ देखता है. फिर वापिस कक्षा को संबोधित करता
है.
हंसिक : तुम्हारी मैडम जल्द ही आ जाएगी. तब तक मैं थोडा और तुम लोगों को बता
देता हूँ.
मैडम का नाम सुनते ही कक्षा में फिर चुप्पी छा जाती है.
हंसिक (तर्सिका से) : तुमको तो पसीना आ रहा है. खिड़की खोल दूं क्या ?
तर्सिका 'न' में मुंडी हिला देती है.
हंसिक : चलो ठीक है. अब सितम्बर तो आ ही गया है. अक्टूबर में दिवाली है.
दिवाली पर सब लोग कुछ न कुछ करने की सोच रहे हैं या नहीं ?
कोई भी बच्चा कुछ भी जवाब नहीं देता है.
हंसिक (कोई जवाब न पाकर) : मैंने तो यह फैसला किया है कि अपनी शिक्षा का पालन
करके इस बार मैं जिम्मेदार नागरिक होने का कर्तव्य निभाऊंगा. दिवाली पर
जिम्मेदार नागरिक क्या करता है, पता है ?
अक्षेष : नहीं.
हंसिक : दिवाली पर जिम्मेदार नागरिक, शरीर और पर्यावरण को नुक्सान पहुचाने
वाले हानिकारक फटाके नहीं फोड़ता है. मैडम ने तुम लोगों को ये बात बताई है या
नहीं ?
परधीश : अभी तक तो नहीं बताई है.
हयात : लेकिन जल्द ही बताने वाली हैं. अभी दिवाली दूर है इसीलिए नहीं बताया
है.
हंसिक : बहुत देर के बाद किसी के मूंह से कुछ निकला है. वर्ना कक्षा में इतनी
शांति थी कि ऐसा लग रहा था कुछ गड़बड़ है. सबके चेहरे एकदम डरे हुए दिख रहे थे.
थोडा चेहरे पर मुस्कराहट लाओ. थोडा हंसो, खिलखिलाओ. अभी तो तुम सब लोग बच्चे
हो, अभी हंस सकते हो. बड़ा होने पर यह मौका नहीं मिलेगा. चेहरे से हंसी गायब हो
जाएगी. शिक्षा का उद्देश्य भी चेहरे पर हंसी लाना है.
लश्कू : जी सर.
हंसिक की नज़र अचानक पहन्सिका मैडम की डेस्क के पीछे उसकी कुर्सी पर रखा फूलों
का गुच्छा नज़र आता है. वह पास जाकर झुककर गुच्छे को देखता है. फिर गुच्छे को
हाथ में उठा लेता है.
गुच्छे को देखते ही पूरी कक्षा सुन्न हो जाती है.
लश्कू : ये यहीं पर कैसे रह गया ?
हंसिक : क्या मतलब ?
तिर्सिका : इसका बोलने का मतलब है कि ये तो मैडम के साथ जाना चाहिए था.
हंसिक : मैडम के साथ जाना चाहिए था ?
छवि (तिर्सिका को गुस्से से देखकर) : हमने थोड़ी ही मैडम को दिया है ये गुच्छा.
हंसिक: तुमने नहीं दिया है तो तुम लोगों को देना चाहिए. आज शिक्षक दिवस है, तो
तुम सब लोगों को मैडम को फूल देना चाहिए.
हंसिक फूलों के गुच्छे को देखता है और उसको सूंघता है.
हंसिक : इसमें से सुगंध तो बहुत ही अच्छी आ रही है. ये फूलों की प्राकृतिक
सुगंध नहीं है.
नीरा (के मुख से निकल जाता है) : ये तो इत्र है.
हंसिक को छींक आ जाती है.
अक्षेष (बात को सम्हालते हुए) : मैडम का है ये फूलों का गुच्छा. मैडम से पूछे
बिना इसको नहीं सूंघना चाहिए.
हंसिक : मुझे नहीं लगता है कि फूलों का गुच्छा सूंघने पर मैडम को कोई एतराज़
होगा.
हंसिक नीरा की तरफ देखकर उससे पूछता है.
हंसिक (नीरा से) : इत्र है ? फूलों पर इत्र छिड़का है ?
हंसिक एक बार और छींक देता है.
तर्सिका : सर, क्या आपको भी इत्र से एलर्जी है ?
हंसिक : तुमको कैसे ...
हंसिक दो-तीन बार और छींक देता है.
निराद्री : मैडम को भी गुच्छे को सूंघने से छीकें आ गयीं थीं.
हंसिक : मैडम को तो आएगी ही छींकें अगर गुच्छे पर इत्र छिड़का है तो.
लश्कू : जी ?
नीरा : सर आपको कैसे पता कि मैडम को इत्र से एलर्जी है ?
हंसिक फिर छींकता है.
हंसिक : अरे, हम दोनों को ही इत्र से एलर्जी है. हम दोनों की साँसे फूल जाती
हैं और दम घुट जाता है किसी ख़ास प्रकार के इत्र से.
लश्कू : आप दोनों को ? आप मैडम को जानते हैं क्या ?
हंसिक की सांस फूलने लगती है. वो छाती पकड़कर कुर्सी पर बैठ जाता है. उसका दम
घुटने लगता है.
हंसिक : मेरा नाम 'हंसिक' है, और उसका 'पहन्सिका'. नाम से नहीं समझा तुम लोगों
को ? हम दोनों जुड़वां भाई-बहन हैं. हम दोनों को एक ही
प्रकार की एलर्जी है.
लश्कू, अक्षेष और परधीश खड़े हो जाते हैं.
हंसिक थोड़ी देर अपने आप से और सांस लेने से झूझता है. फिर जमीन पर ठीक उसी
स्थान पर गिर जाता है जहां पहन्सिका गिर गई थी.
निराद्री : देखा, ये सर भी बेहोश हो गए.
लश्कू (फाल्गुन से) : फाल्गुन, चल जल्दी आ. देख इसकी नब्ज़ चल रही है या
पहन्सिका मैडम की तरह ही ...
फाल्गुन जल्दी से उठकर आता है और हंसिक के हाथों पर उसकी नब्ज़ टटोलता है.
फाल्गुन : यहाँ तो नहीं मिल रही है. गले पर देखता हूँ.
फाल्गुन गले पर देखता है.
फाल्गुन : गले पर भी नहीं है.
लश्कू : साँसे देख चल रही हैं या नहीं.
फाल्गुन हंसिक की छाती पर हाथ रखकर साँसें देखता है, फिर हंसिक के मूंह पर कान
रखकर सुनता है.
फाल्गुन (धीरे धीरे उठता है) : कुछ भी नहीं है. कोई सांस नहीं है.
मोनासी : मतलब ये सर भी मर गए क्या ?
क्लास में चुप्पी छा जाती है.
निराद्री (जोर से चिल्लाती है) : मैंने तो पहले ही कहा था कि बुरा काम नहीं
करना चाहिए.
लश्कू : चल चुप पगली, हम लोगों ने कोई बुरा काम थोड़े ही किया है.
मोनासी जोर जोर से रोने लगती है.
अक्षेष : अब इस हंसिक सर का क्या करेंगे हम लोग ?
लश्कू : कुछ तो करना पड़ेगा, नहीं तो अब तो पुलीस जरूर हम लोगों को अन्दर करके
मारेगी.
(पर्दा गिरता है.)